मोहसिन नक़वी
पुस्तकें 11
चित्र शायरी 5
आप की आँख से गहरा है मिरी रूह का ज़ख़्म आप क्या सोच सकेंगे मिरी तन्हाई को मैं तो दम तोड़ रहा था मगर अफ़्सुर्दा हयात ख़ुद चली आई मिरी हौसला-अफ़ज़ाई को लज़्ज़त-ए-ग़म के सिवा तेरी निगाहों के बग़ैर कौन समझा है मिरे ज़ख़्म की गहराई को मैं बढ़ाऊँगा तिरी शोहरत-ए-ख़ुश्बू का निखार तू दुआ दे मिरे अफ़्साना-ए-रुसवाई को वो तो यूँ कहिए कि इक क़ौस-ए-क़ुज़ह फैल गई वर्ना मैं भूल गया था तिरी अंगड़ाई को
वीडियो 17
This video is playing from YouTube