मुहम्मद याक़ूब आमिर
ग़ज़ल 7
अशआर 11
बाद-ए-नफ़रत फिर मोहब्बत को ज़बाँ दरकार है
फिर अज़ीज़-ए-जाँ वही उर्दू ज़बाँ होने लगी
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हर नया रस्ता निकलता है जो मंज़िल के लिए
हम से कहता है पुरानी रहगुज़र कुछ भी नहीं
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मुझे भी ख़ुद न था एहसास अपने होने का
तिरी निगाह में अपना मक़ाम खोने तक
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न समझे अश्क-फ़िशानी को कोई मायूसी
है दिल में आग अगर आँख में भी पानी है
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सच कहियो कि वाक़िफ़ हो मिरे हाल से 'आमिर'
दुनिया है ख़फ़ा मुझ से कि दुनिया से ख़फ़ा मैं
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