aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
असीरान-ए-क़फ़स पर ज़ुल्म तो सय्याद करते हैं
कि उन के पर कतर लेते हैं तब आज़ाद करते हैं
ख़ुदा की शान कि हम को उठा के महफ़िल से
रक़ीब बैठे हैं ज़ानू तिरा दबाए हुए
कूचा-ए-यार में जाने की कभी ख़ू न गई
ठोकरें खा के भी सँभले न सँभलने वाले
उमंगों पर है अब उन की जवानी
ख़ुश आए क्यूँ न इतराना किसी का
शरर-ए-नाला-ए-बुलबुल से लगी उन में आग
जो शजर बाग़ में थे फूलने फलने वाले
Durra-e-Farooqi
Zarb-ut-Tafneed Ala Naqd-it-Tanqeed
1913
Rooh-e-Zindagi
1964
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