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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मिर्ज़ा अतहर ज़िया

1981 - 2018 | आज़मगढ़, भारत

मिर्ज़ा अतहर ज़िया

ग़ज़ल 14

अशआर 15

मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए

मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ

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तेरी दहलीज़ पे इक़रार की उम्मीद लिए

फिर खड़े हैं तिरे इंकार के मारे हुए लोग

देखते रहते हैं ख़ुद अपना तमाशा दिन रात

हम हैं ख़ुद अपने ही किरदार के मारे हुए लोग

ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी

मैं अपनी लाश पे सर रख के रो रहा हूँ अभी

इंतिज़ार करो कल का आज दर्ज करो

ख़मोशी तोड़ दो और एहतिजाज दर्ज करो

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