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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मेहदी अली ख़ान ज़की लखनवी

मेहदी अली ख़ान ज़की लखनवी

अशआर 2

इक ज़रा तेग़-ए-निगह को जो इशारा हो जाए

आप का नाम हो और काम हमारा हो जाए

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एक नश्तर है कि देता है रग-ए-जाँ को ख़राश

एक काँटा है कि पहलू में चुभोता है कोई

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