aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1766 - 1844 | लखनऊ, भारत
मिस्ल-ए-आईना है उस रश्क-ए-क़मर का पहलू
साफ़ इधर से नज़र आता है उधर का पहलू
सर झुका लेता है लाला शर्म से
जब जिगर के दाग़ दिखलाते हैं हम
ग़फ़लत में फ़र्क़ अपनी तुझ बिन कभू न आया
हम आप के न आए जब तक कि तू न आया
नज़्अ' में गर मिरी बालीं पे तू आया होता
इस तरह अश्क मैं आँखों में न लाया होता
मरासी-ए-मीर ख़लीक़
मीर मुस्तहसन ख़लीक़ के ग़ैर मतबूआ मरासी
Marsiya
Jab Ahl-e-Bait Be Sar-o-Saman Ho Gaye
Marsiya Dar Hal Shahadat Ali Akbar
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