aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1783 - 1867 | लखनऊ, भारत
महान उर्दू शायर मीर तक़ी मीर के बेटे
क्या ग़ैर क्या अज़ीज़ कोई नौहागर न हो
ऐ जान यूँ निकल कि बदन तक ख़बर न हो
सेह्हत है मरज़ क़ज़ा शिफ़ा है
अल्लाह हकीम है हमारा
चश्म-ए-बातिन में से जब ज़ाहिर का पर्दा उठ गया
जो मुसलमाँ था वही हिन्दू नज़र आया मुझे
नज़र किसी को वो मू-ए-कमर नहीं आता
ब-रंग-ए-तार-ए-नज़र है नज़र नहीं आता
क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
Deewan-e-Arsh
दीवान-ए-अर्श
मै मुक़द्दमा-ओ-सवानेह
Deewan-e-Meer Kallu Marhoom Arsh
1875
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