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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मारूफ़ रायबरेलवी

1985 | रायबरेली, भारत

मारूफ़ रायबरेलवी

ग़ज़ल 7

नज़्म 5

 

अशआर 9

तिरे बदन की महक को गुलाब से तश्बीह

कि जैसे कोई दिखाए चराग़ सूरज को

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यक़ीन मानव कि उर्दू जो बोल सकता है

वो पत्थरों का जिगर भी टटोल सकता है

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हमारे मुँह पे उड़ाता हुआ वो धूल गया

हमीं ने चलना सिखाया हमीं को भूल गया

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वक़्त जब आया तो सब दा'वे ज़बानी निकले

यार समझे थे जिन्हें दुश्मन-ए-जानी निकले

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असर दुआओं में होता है किस क़दर 'मारूफ़'

बलाएँ देखी हैं हम ने सरों से टलते हुए

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क़ितआ 2

 

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