मंसूर उस्मानी
ग़ज़ल 15
अशआर 17
आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए
बरसात के मौसम में सितारे निकल आए
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मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए
शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में
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पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया
फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो
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अपनी तारीफ़ सुनी है तो ये सच भी सुन ले
तुझ से अच्छा तिरा किरदार नहीं हो सकता
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