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मंसूर उस्मानी

1954 | मुरादाबाद, भारत

मंसूर उस्मानी

ग़ज़ल 15

अशआर 17

आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए

बरसात के मौसम में सितारे निकल आए

मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए

शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में

जहाँ जहाँ कोई उर्दू ज़बान बोलता है

वहीं वहीं मिरा हिन्दोस्तान बोलता है

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पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया

फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो

अपनी तारीफ़ सुनी है तो ये सच भी सुन ले

तुझ से अच्छा तिरा किरदार नहीं हो सकता

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