महमूद शाम
ग़ज़ल 36
नज़्म 2
अशआर 7
बस एक अपने ही क़दमों की चाप सुनता हूँ
मैं कौन हूँ कि भरे शहर में भी तन्हा हूँ
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उस को देखा तो ये महसूस हुआ
हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले
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कितने चेहरे कितनी शक्लें फिर भी तन्हाई वही
कौन ले आया मुझे इन आईनों के दरमियाँ
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औने-पौने ग़ज़लें बेचीं नज़्मों का व्यापार किया
देखो हम ने पेट की ख़ातिर क्या क्या कारोबार किया
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