लुत्फ़ुर्रहमान
ग़ज़ल 21
अशआर 9
किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल की
चारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला
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जाते जाते दिया इस तरह दिलासा उस ने
बीच दरिया में कोई जैसे किनारा निकला
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तमाम उम्र मिरा मुझ से इख़्तिलाफ़ रहा
गिला न कर जो कभी तेरा हम-नवा न हुआ
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मैं ख़ुद ही अपने तआक़ुब में फिर रहा हूँ अभी
उठा के तू मेरी राहों से रास्ता ले जा
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मैं दर-ब-दर हूँ अभी अपनी जुस्तुजू में बहुत
मैं अपने लहजे को अंदाज़ दे रहा हूँ अभी
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