aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1795 - 1854 | लखनऊ, भारत
19 वीं सदी के शायर
देखना हसरत-ए-दीदार इसे कहते हैं
फिर गया मुँह तिरी जानिब दम-ए-मुर्दन अपना
है साया चाँदनी और चाँद मुखड़ा
दुपट्टा आसमान-ए-आसमाँ है
जिस को आते देखता हूँ ऐ परी कहता हूँ मैं
आदमी भेजा न हो मेरे बुलाने के लिए
आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ
लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख
सर मिरा काट के पछ्ताइएगा
किस की फिर झूटी क़सम खाइएगा
Daftar-e-Fasahat
1847
Intikhab Khvaja Wazir
1983
जब ख़फ़ा होता है तो यूँ दिल को समझाता हूँ मैं आज है ना-मेहरबाँ कल मेहरबाँ हो जाएगा
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