ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल 25
अशआर 21
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है
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हमें हर वक़्त ये एहसास दामन-गीर रहता है
पड़े हैं ढेर सारे काम और मोहलत ज़रा सी है
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मिरी मुश्किल मिरी मुश्किल नहीं है
वसीला तेरी आसानी का मैं हूँ
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ख़ुदा ने बख़्शा है क्या ज़र्फ़ मोम-बत्ती को
पिघलते रहना मगर सारी रात चुप रहना
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