aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1944
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
वो लोग अपने आप में कितने अज़ीम थे
जो अपने दुश्मनों से भी नफ़रत न कर सके
परिंद शाख़ पे तन्हा उदास बैठा है
उड़ान भूल गया मुद्दतों की बंदिश में
तेरी आमद की मुंतज़िर आँखें
बुझ गईं ख़ाक हो गए रस्ते
Gil-e-Lajvard
2005
Shumara Number-001
2010
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
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