aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1805 - 1878
लोग कहते हैं कि फ़न्न-ए-शाइरी मनहूस है
शेर कहते कहते मैं डिप्टी कलेक्टर हो गया
पूरा करेंगे होली में क्या वादा-ए-विसाल
जिन को अभी बसंत की ऐ दिल ख़बर नहीं
न ख़ंजर उठेगा न तलवार इन से
ये बाज़ू मिरे आज़माए हुए हैं
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
ज़बानों से दहानों से तकल्लुम से बयानों से
चलती तो है पर शोख़ी-ए-रफ़्तार कहाँ है
तलवार में पाज़ेब की झंकार कहाँ है
Talkhees-e-Moalla
1976
Tazkira-e-Nadir
1957
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