कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल 16
नज़्म 13
अशआर 21
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
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मकाँ शीशे का बनवाते हो 'आज़र'
बहुत आएँगे पत्थर देख लेना
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सुब्ह ले जाते हैं हम अपना जनाज़ा घर से
शाम को फिर उसे काँधों पे उठा लाते हैं
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कमरे में फैलता रहा सिगरेट का धुआँ
मैं बंद खिड़कियों की तरफ़ देखता रहा
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चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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