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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

1911 - 1993 | लखनऊ, भारत

जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

ग़ज़ल 20

अशआर 27

तू ने ही रह दिखाई तो दिखाएगा कौन

हम तिरी राह में गुमराह हुए बैठे हैं

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है फ़हम उस का जो हर इंसान के दिल की ज़बाँ समझे

सुख़न वो है जिसे हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे

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मोहब्बत में नहीं है इब्तिदा या इंतिहा कोई

हम अपने इश्क़ को ही इश्क़ की मंज़िल समझते हैं

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आँखों आँखों में पिला दी मिरे साक़ी ने मुझे

ख़ौफ़-ए-ज़िल्लत है अंदेशा-ए-रुस्वाई है

क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का

क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का

पुस्तकें 1

 

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