aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1974 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान
ये नाद-ए-अली का अजब मो'जिज़ा था
सभी तीर पलटे कमानों की जानिब
मिरी बेबसी पे न मुस्कुरा ये बजा कि मैं तिरी ख़ाक-ए-पा
जो हिला के रख दे फ़लक को भी वो असर है अब मिरी आह में
हर बार सुहूलत से मुझे भूलने वाले
इस बार कहीं मैं भी तुझे भूल न जाऊँ
तू मुख़िल जब से हुआ है मिरी तन्हाई में
ऐ ग़म-ए-यार मिरी ख़ुद से मुलाक़ात गई
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