जावेद वशिष्ट
ग़ज़ल 12
अशआर 9
आँख उठाओ तो हिजाबात का इक आलम है
दिल से देखो तो कोई राह में हाइल भी नहीं
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आज अपने भी पराए से नज़र आते हैं
प्यार की रस्म ज़माने से उठी जाती है
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कोई ख़याल कोई याद कोई तो एहसास
मिला दे आज ज़रा आ के हम को ख़ुद हम से
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ग़म से एहसास का आईना जिला पाता है
और ग़म सीखे है आ कर ये सलीक़ा मुझ से
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मुद्दत से रही फ़र्श तिरी राहगुज़र में
तब जा के सितारों से कहीं आँख लड़ी है
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