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जावेद वशिष्ट

1920 - 1994 | दिल्ली, भारत

जावेद वशिष्ट

ग़ज़ल 12

अशआर 9

काँटों पे चले हैं तो कहीं फूल खिले हैं

फूलों से मिले हैं तो बड़ी चोट लगी है

ग़म से एहसास का आईना जिला पाता है

और ग़म सीखे है कर ये सलीक़ा मुझ से

ये तो वक़्त वक़्त की बात है हमें उन से कोई गिला नहीं

वो हों आज हम से ख़फ़ा ख़फ़ा कभू हम से उन को भी प्यार था

दर्द की आँच बना देती है दिल को इक्सीर

दर्द से दिल है अगर दर्द नहीं दिल भी नहीं

आज अपने भी पराए से नज़र आते हैं

प्यार की रस्म ज़माने से उठी जाती है

पुस्तकें 25

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