जान काश्मीरी
ग़ज़ल 14
अशआर 3
दोस्तों और दुश्मनों में किस तरह तफ़रीक़ हो
दोस्तों और दुश्मनों की बे-रुख़ी है एक सी
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उस को पता नहीं है ख़िज़ाँ के मिज़ाज का
वो वाक़िफ़-ए-बहार हुआ है अभी अभी
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तिरे फ़िराक़ के सदमे क़ुबूल हैं लेकिन
जफ़ा के ब'अद चले तो वफ़ा का दौर चले
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