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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जमुना प्रसाद राही

अलीगढ़, भारत

जमुना प्रसाद राही

ग़ज़ल 15

अशआर 14

जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है

हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं

कच्ची दीवारें सदा-नोशी में कितनी ताक़ थीं

पत्थरों में चीख़ कर देखा तो अंदाज़ा हुआ

कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ

अपनी आँखें मिरी आँखों के मुक़ाबिल लाओ

गाँव से गुज़रेगा और मिट्टी के घर ले जाएगा

एक दिन दरिया सभी दीवार दर ले जाएगा

अजीब आग लगा कर कोई रवाना हुआ

मिरे मकान को जलते हुए ज़माना हुआ

पुस्तकें 2

 

ऑडियो 11

कुछ तो सच्चाई के शहकार नज़र में आते

कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ

कोहसार-ए-तग़ाफ़ुल को सदा काट रही है

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