जमाल ओवैसी
ग़ज़ल 18
अशआर 5
गुरेज़-पा है नया रास्ता किधर जाएँ
चलो कि लौट के हम अपने अपने घर जाएँ
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जो माँग रहे हो वो मिरे बस में नहीं है
दरख़्वास्त तुम्हारी है ज़रूरत से ज़ियादा
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घर के सब दरवाज़े क्यूँ दीवार हुए हैं
घर से बाहर दुनिया सारी चीख़ रही है
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तन्हाई मिली मुझ को ज़रूरत से ज़ियादा
पढ़ती हैं किताबें मुझे वहशत से ज़ियादा
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