इरफ़ान अहमद
ग़ज़ल 5
अशआर 8
नश्शा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तर
हम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें
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ज़ख़्म जो तू ने दिए तुझ को दिखा तो दूँ मगर
पास तेरे भी नसीहत के सिवा है और क्या
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जाने किस शहर में आबाद है तू
हम हैं बर्बाद यहाँ तेरे बाद
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अकेले पार उतर के बहुत है रंज मुझे
मैं उस का बोझ उठा कर भी तैर सकता था
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ग़म-ए-हयात ने बख़्शे हैं सारे सन्नाटे
कभी हमारे भी पहलू में दिल धड़कता था
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