इमाम आज़म
ग़ज़ल 12
नज़्म 1
अशआर 10
तेरी ख़ुशबू से मोअत्तर है ज़माना सारा
कैसे मुमकिन है वो ख़ुशबू भी गुलाबों में मिले
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दुनिया की इक रीत पुरानी, मिलना और बिछड़ना है
एक ज़माना बीत गया है तुम कब मिलने आओगे
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किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा
ज़मीं का दर्द कभी आसमाँ न समझेगा
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गेसू ओ रुख़्सार की बातें करें
आओ मिल कर प्यार की बातें करें
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