इब्न-ए-मुफ़्ती
ग़ज़ल 9
नज़्म 3
अशआर 15
कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
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जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक
अब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी
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कर बुरा तो भला नहीं होता
कर भला तो बुरा नहीं होता
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हम ने देखा है रू-ब-रू उन के
आईना आईना नहीं होता
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इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना
इस तरह तो कोई अपनों से ख़फ़ा होता नहीं
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