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ग़ज़ल 38
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आप के बा'द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
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आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
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ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
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शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
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कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
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कहानी 2
त्रिवेणी 38
पुस्तकें 24
चित्र शायरी 15
मेरे कपड़ों में टंगा है तेरा ख़ुश-रंग लिबास! घर पे धोता हूँ हर बार उसे और सुखा के फिर से अपने हाथों से उसे इस्त्री करता हूँ मगर इस्त्री करने से जाती नहीं शिकनें उस की और धोने से गिले-शिकवों के चिकते नहीं मिटते! ज़िंदगी किस क़दर आसाँ होती रिश्ते गर होते लिबास और बदल लेते क़मीज़ों की तरह!
हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए सहरा के उस तरफ़ से गए सारे कारवाँ सुन सुन के हम तो सिर्फ़ सदा-ए-जरस जिए होंटों में ले के रात के आँचल का इक सिरा आँखों पे रख के चाँद के होंटों का मस जिए महदूद हैं दुआएँ मिरे इख़्तियार में हर साँस पुर-सुकून हो तू सौ बरस जिए
फूलों की तरह लब खोल कभी ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी अल्फ़ाज़ परखता रहता है आवाज़ हमारी तोल कभी अनमोल नहीं लेकिन फिर भी पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी खिड़की में कटी हैं सब रातें कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह हो जाता है डाँवा-डोल कभी