गुलनार आफ़रीन
ग़ज़ल 13
नज़्म 3
अशआर 20
सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो
बहार बन के कोई अब तो हम-सफ़र आए
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किन शहीदों के लहू के ये फ़रोज़ाँ हैं चराग़
रौशनी सी जो है ज़िंदाँ के हर इक रौज़न में
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दिल का हर ज़ख़्म तिरी याद का इक फूल बने
मेरे पैराहन-ए-जाँ से तिरी ख़ुशबू आए
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'गुलनार' मस्लहत की ज़बाँ में न बात कर
वो ज़हर पी के देख जो सच्चाइयों में है
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