ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल 38
अशआर 23
शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है
ये आज़माइश-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की मंज़िल है
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