फ़रहत कानपुरी
ग़ज़ल 10
अशआर 6
दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता
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आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर
दिल ही में न रह जाओ आँखों से निहाँ हो कर
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दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए
चंद लम्हे जो कहानी हो गए
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'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ में
वल्लाह तिरा रंग-ए-सुख़न याद रहेगा
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