एजाज़ गुल
ग़ज़ल 28
नज़्म 3
अशआर 25
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई था अगर
फिर ये हंगामा मुलाक़ात से पहले क्या था
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मैं उम्र को तो मुझे उम्र खींचती है उलट
तज़ाद सम्त का है अस्प और सवार के बीच
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नतीजा एक सा निकला दिमाग़ और दिल का
कि दोनों हार गए इम्तिहाँ में दुनिया के
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धूप जवानी का याराना अपनी जगह
थक जाता है जिस्म तो साया माँगता है
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अजीब शख़्स था मैं भी भुला नहीं पाया
किया न उस ने भी इंकार याद आने से
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