aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1914 - 1968 | रामपुर, भारत
प्रसिद्ध शायर, लोकप्रिय शे’र ‘अब तो इतनीभी मयस्सर नहीं मयखाने में - जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में’ के रचयिता
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
वक़्त बर्बाद करने वालों को
वक़्त बर्बाद कर के छोड़ेगा
अगर मौजें डुबो देतीं तो कुछ तस्कीन हो जाती
किनारों ने डुबोया है मुझे इस बात का ग़म है
ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में
इस से पहले कि लोग पहचानें
ख़ुद को पहचान लो तो बेहतर है
Charagh-e-Manzil
1981
Kulliyat-e-Rahi
Manzil ki Taraf
1969
Pankhudiyan
1993
Rahi Ke Badhte Qadam
Sad Chak
1985
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
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