दिल अय्यूबी
ग़ज़ल 25
अशआर 9
ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर कोई मज़ाक़ नहीं
सऊबतों से जो घबरा गए हों घर जाएँ
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फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक हो
हम आदमी हैं तो ऐब-ओ-हुनर भी रखते हैं
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लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है
बस गया मेरे तसव्वुर में ये चेहरा किस का
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इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा
ऐ 'दिल' ये इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे
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न गिर्द-ओ-पेश से इस दर्जा बे-नियाज़ गुज़र
जो बे-ख़बर से हैं सब की ख़बर भी रखते हैं
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