बिस्मिल सईदी के शेर
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
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सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते
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ठोकर किसी पत्थर से अगर खाई है मैं ने
मंज़िल का निशाँ भी उसी पत्थर से मिला है
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किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल'
मगर ख़ुदा की क़सम लखनऊ ने लूट लिया
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टैग : लखनऊ
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मेरे दिल को भी पड़ा रहने दो
चीज़ रक्खी हुई काम आती है
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अधर उधर मिरी आँखें तुझे पुकारती हैं
मिरी निगाह नहीं है ज़बान है गोया
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ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौक़ है मगर
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किए बग़ैर
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टैग : हवा
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काबे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
बुत-ख़ाने में काफ़िर को भी काफ़र नहीं कहते
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तुम जब आते हो तो जाने के लिए आते हो
अब जो आ कर तुम्हें जाना हो तो आना भी नहीं
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ना-उमीदी है बुरी चीज़ मगर
एक तस्कीन सी हो जाती है
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टैग : मायूसी
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सुकूँ नसीब हुआ हो कभी जो तेरे बग़ैर
ख़ुदा करे कि मुझे तू कभी नसीब न हो
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हुस्न भी कम्बख़्त कब ख़ाली है सोज़-ए-इश्क़ से
शम्अ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ
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टैग : हुस्न
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रो रहा हूँ आज मैं सारे जहाँ के सामने
रोएगा कल देखना सारा जहाँ मेरे लिए
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किसी के सितम इस क़दर याद आए
ज़बाँ थक गई मेहरबाँ कहते कहते
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दोहराई जा सकेगी न अब दास्तान-ए-इश्क़
कुछ वो कहीं से भूल गए हैं कहीं से हम
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ज़माना-साज़ियों से मैं हमेशा दूर रहता हैं
मुझे हर शख़्स के दिल में उतर जाना नहीं आता
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इश्क़ भी है किस क़दर बर-ख़ुद-ग़लत
उन की बज़्म-ए-नाज़ और ख़ुद्दारियाँ
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टैग : इश्क़
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दो दिन में हो गया है ये आलम कि जिस तरह
तेरे ही इख़्तियार में हैं उम्र भर से हम
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मोहब्बत में ख़ुदा जाने हुईं रुस्वाइयाँ किस से
मैं उन का नाम लेता हूँ वो मेरा नाम लेते हैं
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गुल तो गुल ख़ार पे देखी जो कभी गर्म शु'आ'
छा गए बाग़ पे हम अब्र-ए-बहाराँ हो कर
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