aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1883 - 1940 | लखनऊ, भारत
लोकप्रिय शायर, लेखक और टीकाकार. ग़ालिब के कलाम की व्याख्या के लिए मशहूर. ‘गंजीना-ए-तहक़ीक़’ नामक शायरी पर आलोचनात्मक लेखों का संग्रह प प्रकाशित हुआ
उमीद का ये रंग है हुजूम-रंज-ओ-यास में
कि जिस तरह कोई हसीं हो मातमी लिबास में
लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसीबत सी हो गई
मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई
क्यूँ उलझते हो हर इक बात पे 'बेख़ुद' उन से
तुम भी नादान बने जाते हो नादान के साथ
उस के हाथों न मिला चैन मुझी को दम भर
मुझ से ले कर दिल-ए-बेताब करोगे क्या तुम
नशेमन फूँकने वाले हमारी ज़िंदगी ये है
कभी रोए कभी सज्दे किए ख़ाक-ए-नशेमन पर
Ganjeena-e-Tahqeeq
1979
Intikhab-e-Kalam-e-Bekhud Mohani
1983
Jauhar-e-Aaina
कुल्लियात-ए-बेख़ुद
उर्दू,फ़ारसी कलाम
1942
Kulliyat-e-Bekhud
Urdu, Farsi Kalam
1987
Manzar-e-Aaena
Volume-001
Sharh-e-Deewan-e-Ghalib
1970
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