बक़ा बलूच
ग़ज़ल 9
नज़्म 4
अशआर 13
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
आदमी से आदमी बरहम रहा
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मैं किनारे पे खड़ा हूँ तो कोई बात नहीं
बहता रहता है तिरी याद का दरिया मुझ में
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जिस्म अपने फ़ानी हैं जान अपनी फ़ानी है फ़ानी है ये दुनिया भी
फिर भी फ़ानी दुनिया में जावेदाँ तो मैं भी हूँ जावेदाँ तो तुम भी हो
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तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
मैं तिरी याद में जलता हूँ
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