बालमोहन पांडेय
ग़ज़ल 15
नज़्म 3
अशआर 3
मेरे अलावा उसे ख़ुद से भी मोहब्बत है
और ऐसा करने से वो बेवफ़ा नहीं होती
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ग़मों से बैर था सो हम ने ख़ुद-कुशी कर ली
शजर गिरा के परिंदों से इंतिक़ाम लिया
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हम अब उदास नहीं सर-ब-सर उदासी हैं
हमें चराग़ नहीं रौशनी कहा जाए
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