अज़रा नक़वी
ग़ज़ल 17
नज़्म 15
अशआर 6
फैलते हुए शहरो अपनी वहशतें रोको
मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो
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बचपन कितना प्यारा था जब दिल को यक़ीं आ जाता था
मरते हैं तो बन जाते हैं आसमान के तारे लोग
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आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल क़ुर्बान किया
हाल को दफ़ना देते हैं हम जीने की तय्यारी में
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अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आना
वक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
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हक़ीक़तें तो मिरे रोज़ ओ शब की साथी हैं
मैं रोज़ ओ शब की हक़ीक़त बदलना चाहती हूँ
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कहानी 14
पुस्तकें 197
वीडियो 6
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