अज़ीज़ अन्सारी
ग़ज़ल 7
नज़्म 1
अशआर 4
ये अपनी बेबसी है या कि अपनी बे-हिसी यारो
है अपना हाथ उन के सामने जो ख़ुद भिकारी हैं
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अम्न और आश्ती से उस को क्या
उस का मक़्सद तो इंतिशार में है
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हमारी मुफ़्लिसी आवारगी पे तुम को हैरत क्यूँ
हमारे पास जो कुछ है वो सौग़ातें तुम्हारी हैं
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अपने लिए ही मुश्किल है
इज़्ज़त से जी पाना भी
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