अज़हर नक़वी
ग़ज़ल 13
अशआर 19
शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं
क्या बला उतरी है क्यूँ दीवार-ओ-दर ख़ामोश हैं
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रात भर चाँद से होती रहें तेरी बातें
रात खोले हैं सितारों ने तिरे राज़ बहुत
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अजब हैरत है अक्सर देखता है मेरे चेहरे को
ये किस ना-आश्ना का आइने में अक्स रहता है
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दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है
जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा रोते रोते सो जाता है
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अजब नहीं कि बिछड़ने का फ़ैसला कर ले
अगर ये दिल है तो नादान हो भी सकता है
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