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असलम कोलसरी

1946 - 2016 | लाहौर, पाकिस्तान

असलम कोलसरी

ग़ज़ल 20

अशआर 9

शहर में कर पढ़ने वाले भूल गए

किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था

ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम'

अपने दरवाज़े को बाहर से मुक़फ़्फ़ल कर के

हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं

बिछड़ के हम ने कई रात दिन गुज़ारे हैं

'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की

और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया

सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना

तुम मिरे बाद भी हसीं रहना

पुस्तकें 1

 

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