असलम कोलसरी
ग़ज़ल 20
अशआर 9
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था
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ईद का दिन है सो कमरे में पड़ा हूँ 'असलम'
अपने दरवाज़े को बाहर से मुक़फ़्फ़ल कर के
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हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं
बिछड़ के हम ने कई रात दिन गुज़ारे हैं
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'असलम' बड़े वक़ार से डिग्री वसूल की
और इस के बा'द शहर में ख़्वांचा लगा लिया
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सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना
तुम मिरे बाद भी हसीं रहना
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