असग़र गोंडवी
ग़ज़ल 38
अशआर 57
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
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पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
हम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए
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ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा
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एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
लुत्फ़ पीने में नहीं है बल्कि खो जाने में है
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अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
तेरी सूरत में है क्या जो मेरी सूरत में नहीं
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