ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल 10
अशआर 9
इस क़दर मुझ पे मरती है पगली कोई
रोने लगती है डी पी हटाने के बाद
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क्या बताऊँ मैं कि तुम ने किस को सौंपी है हया
इस लिए सोचा मिरी ख़ामोशियाँ ही ठीक हैं
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शाम के तन पर सजी जो सुरमई पोशाक है
हम चराग़ों की फ़क़त ये रौशनी पोशाक है
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सब की तक़रीरों में वैसे है ख़ुदा सब का ही इक
हाँ मगर हर दिल की अपनी मज़हबी पोशाक है
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हो न पाए जब मुकम्मल इश्क़ का क़िस्सा तो फिर
शोहरतें रहने दो अब गुम-नामियाँ ही ठीक हैं
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