अंजुम रूमानी
ग़ज़ल 16
नज़्म 1
अशआर 18
दिल से उठता है सुब्ह-ओ-शाम धुआँ
कोई रहता है इस मकाँ में अभी
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देते नहीं सुझाई जो दुनिया के ख़त्त-ओ-ख़ाल
आए हैं तीरगी में मगर रौशनी से हम
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समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्या
याँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है
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किसी भी हाल में राज़ी नहीं है दिल हम से
हर इक तरह का ये काफ़िर बहाना रखता है
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