अमित शर्मा मीत
ग़ज़ल 27
अशआर 24
दिसम्बर की सर्दी है उस के ही जैसी
ज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है
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रात-भर ख़्वाब में जलना भी इक बीमारी है
इश्क़ की आग से बचने में समझदारी है
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रात बेचैन सी सर्दी में ठिठुरती है बहुत
दिन भी हर रोज़ सुलगता है तिरी यादों से
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पुरानी देख कर तस्वीर तेरी
नया हर दिन गुज़रता जा रहा है
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तेरी सूरत तेरी चाहत यादें सब
छोटे से इस दिल में क्या क्या रक्खूँगा
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