अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल 35
नज़्म 1
अशआर 61
वक़्त से लम्हा लम्हा खेली है
ज़िंदगी इक अजब पहेली है
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ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन
हम-सफ़र आप जो होते तो मज़ा और ही था
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कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखें
कुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं
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अब ज़माना है बेवफ़ाई का
सीख लें हम भी ये हुनर शायद
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क़ाएम है अब भी मेरी वफ़ाओं का सिलसिला
इक सिलसिला है उन की जफ़ाओं का सिलसिला
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वीडियो 11
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