अम्बर शमीम
ग़ज़ल 3
अशआर 4
ख़्वाब आँसू एहतजाजी ज़िंदगी
पूछिए मत शहर-ए-कलकत्ता है क्या
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धूप काफ़ी दूर तक थी राह में
लम्हा लम्हा हो गया पैकर सियाह
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साएबाँ क्या अब्र का टुकड़ा है क्या
धूप तो मा'लूम है साया है क्या
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कौन देता है सदाएँ मुझ को
किस के होंटों का असर बाक़ी है
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