अख़्तर ज़ियाई
ग़ज़ल 19
नज़्म 5
अशआर 4
कोई इलाज-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी बता वाइज़
सुने हुए जो फ़साने हैं फिर सुना न मुझे
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आस डूबी तो दिल हुआ रौशन
बुझ गया दिल तो दिल के दाग़ जले
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भुला चुके हैं ज़मीन ओ ज़माँ के सब क़िस्से
सुख़न-तराज़ हैं लेकिन ख़ला में रहते हैं
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दफ़अतन आँधियों ने रुख़ बदला
ना-गहाँ आरज़ू के बाग़ जले
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