अख़्तर रज़ा सलीमी
ग़ज़ल 9
नज़्म 1
अशआर 13
इक आग हमारी मुंतज़िर है
इक आग से हम निकल रहे हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
हम कभी आसमाँ पे रहते थे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं
गुनाह करता हुआ नेकियाँ कमाता हुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ख़्वाब गलियों में फिर रहे थे और
लोग अपने घरों में सोए थे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए