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ऐश देहलवी

1779 - 1874 | दिल्ली, भारत

ग़ालिब की गज़लों के आलोचक

ग़ालिब की गज़लों के आलोचक

ऐश देहलवी

ग़ज़ल 16

अशआर 5

सीने में इक खटक सी है और बस

हम नहीं जानते कि क्या है दिल

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कलाम-ए-मीर समझे और ज़बान-ए-मीरज़ा समझे

मगर उन का कहा ये आप समझें या ख़ुदा समझे

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बे-सबाती चमन-ए-दहर की है जिन पे खुली

हवस-ए-रंग वो ख़्वाहिश-ए-बू करते हैं

शम्अ सुब्ह होती है रोती है किस लिए

थोड़ी सी रह गई है इसे भी गुज़ार दे

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मैं बुरा ही सही भला सही

पर तिरी कौन सी जफ़ा सही

हास्य शायरी 1

 

पुस्तकें 1

 

ऑडियो 7

आशिक़ों को ऐ फ़लक देवेगा तू आज़ार क्या

क्या हुए आशिक़ उस शकर-लब के

जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद-काम भी है

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