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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद वसी

ग़ज़ल 5

 

नज़्म 7

अशआर 18

वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए

ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए

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जो कहता था ज़मीं को मैं सितारों से सजा दूँगा

वही बस्ती की तह में रख गया चिंगारियाँ अपनी

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जुदाई क्यूँ दिलों को और भी नज़दीक लाती है

बिछड़ कर क्यूँ ज़ियादा प्यार का एहसास होता है

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लोग हैरत से मुझे देख रहे हैं ऐसे

मेरे चेहरे पे कोई नाम लिखा हो जैसे

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मुद्दत के बा'द आइना कल सामने पड़ा

देखी जो अपनी शक्ल तो चेहरा उतर गया

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पुस्तकें 5

 

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